Saturday, 23 September 2017

Publicity Hunter Kejriwal

The publicity hunter Arvind Kejriwal has been out of focus on news front for quiet sometime. Media was not paying any attention to what he was doing or what he was saying. Suddenly on September 21, the Aam Admi Party leader and Delhi Chief Minister surfaced in Chennai. Lo and behold, he hit the headlines on Thursday in national media.

He flew down to Tamil Nadu to share his concern for the country with Kamal Hassan who has decided to take a plunge into politics. The super star of Tamil films who has also a string of Hindi titles to his credit would form a political party that would work and care for common man. Kamal Hassan forgets that the copy right of Aam Admi is with Kejriwal. The founder of Aam Admi Party was alarmed that how come Kamal Hassan was spelling the agenda of his yet to be formed political party without consulting him (Kejriwal).
So, he reached Chennai with a bouquet of flowers to greet Hassan at the latter’s residence. Kejriwal said, “It is important when the country is facing strong forces of corruption and communalism that like-minded people talk to each other and work in tandem with each other. We had a good meeting; we exchanged ideas and spoke about the situation in Tamil Nadu and the country,” Mr. Kejriwal said, adding that they would continue to meet in future.
Kamal Hassan also forgets that Arvind Kejriwal has the copy right of one more issue confronting the nation; the issue of corruption. Kejriwal thinks he is the only leader in the country to fight corruption. Look at his ways of fighting corruption.
Kejriwal is a votary and supporter of Lalu Yadav who has been convicted in the fodder scam and is barred from contesting elections. Kejriwal is also silent on income tax and enforcement directorate investigations against Lalu’s son Tejaswi Yadav and his daughter Misa for holding benami property running into several crores of rupees. So, Kejriwal fight corruption this way. He went to Patna to attend Lalu Yadav’s rally on August 28 last. There was great bonhomie between Kejriwal and the ‘honest politician of Bihar Lalu Yadav at the dais. Kejriwal hugged Lalu assuring his support for Lalu fighting corruption charges and cases against him and his family.
After having been dumped by the Congress and the Left Parties, Kejriwal is desperate to find new friends in politics. But Kamal Hassan should know that embracing Kejriwal would only bring discredit to him and his yet to be formed political outfit.
There are more than half a dozen ministers in Delhi Government headed by Kejriwal who are facing corruption charges. He has thrown his mentors out of Aam Admi Party. Prashant Bhushan and Yogendra Yadav were removed from AAP by Kejriwal. Shanti Bhushan, father of Prashant Bhushan and former Union Law Minster in the Moraraji Desi Government of Janata Party in 1977-79 had contributed Rs, one crore to Party fund of AAP to establish Kejriwal. But Delhi chief minister has no qualms in stabbing his mentors from behind.
~R.K.Sinha


Friday, 21 April 2017

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के देश-विदेश के दौरों से लेकर लुटियन दिल्ली के बंगलों के बाहर सुरक्षा का खर्च आप-हम क्यों उठाएं?

कुछ माह पहले राजधानी के आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष भट्टाचार्य की एक आरटीआई  का जो जवाब भारत सरकार  ने दिया से पता चला कि प्रियंका गांधी को लुटियन दिल्ली के 35 लोधी एस्टेट के शानदार बंगले का मासिक किराया मात्र 8,888 रुपये ही देना पड़ता है। यह छह कमरे और दो बड़े हालों का विशाल बंगला है। कई एकड़ में फैला है। ऊंची दीवारें हैं। जगह-जगह सुरक्षा पोस्ट बने हुए हैं। सुरक्षा प्रहरी २४ घंटे तैनात रहते हैं। यह भी ठीक है कि उनकी भी सुरक्षा अहम है। वे कम से कम नेहरु-गाँधी परिवार की वंशज तो हैं ही। पर उनसे इतना कम किराया क्यों लिया जा रहा है? इतने कम किराए पर राजधानी में एक कमरे का फ्लैट मिलना भी कठिन है। और जब प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा का अपना सैंकड़ों करोड़ का लंबा-चौड़ा कारोबार है। वे स्वयं सक्षम हैं, तो फिर उनसे इतना कम किराया सरकार क्यों लेती है। जाहिर है, देश की जनता को इस सवाल का जवाब तो चाहिए ही। और, क्या प्रियंका गांधी को लगभग मुफ्त में लुटियन जोन के बंगले में रहने की मांग करना स्वयं में शोभा देता है? इस देश में बाकी पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार भी तो हैं। उन्हें तो इस तरह की कोई सुविधाएं नहीं मिलतीं, शायद वे इतनी बेरहमी से ऐसी मांग भी रखने में हिचकते होंगे? प्रियंका तो सांसद या विधायक क्या वार्ड पार्षद तक भी तो नहीं हैं।


और इससे ठीक विपरीत उदाहरण भी सुन लें। अभी हाल ही में भूतपूर्व प्रधानमंत्री पी. वी.नरसिंह राव के पुत्र पी. वी. राजेश्वर राव के निधन का एक छोटा सा समाचार छपा था। वे 70 वर्ष के थे। श्री राव कांग्रेस के पूर्व सांसद भी थे और उन्होंने तेलंगाना में कुछ शिक्षा संस्थानों की शुरुआत भी की थी। उन्हें कभी कोई स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप से सुरक्षा नहीं मिली। उनके बाकी भाई-बहनों को भी कभी एसपीजी सुरक्षा नहीं प्राप्त हुई। वे लगभग अनाम-अज्ञात इस संसार से कूच कर गए। राव की तरह से बाकी भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्य भी सामान्य नागरिक की तरह से ही जीवन बिता रहे हैं। इनमें पत्नी और बच्चे शमिल हैं। डा. मनमोहन सिंह की एक पुत्री डा. उपिन्दर सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी  में इतिहास पढ़ाती हैं, सामान्य अध्यापकों की तरह। वह पहले सेंट स्टीफंस कालेज से भी जुड़ी थीं। चंद्रशेखर जी के दोनों पुत्र भी बिना किसी खास सुरक्षा व्यवस्था के जीवनयापन कर रहे हैं। एक पुत्र नीरज शेखर तो अभी भी सांसद हैं। यहां तक कि वर्तमान प्रघानमंत्री का पूरा परिवार भी आम नागरिक की जिंदगी जी रहा है। पर राजीव गांधी के परिवार पर रोज करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। क्योंकि वे एसपीजी के सुरक्षा कवर में रहते हैं। क्या बाकी प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्यों की जान को किसी से कोई खतरा नहीं है? क्या वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं?

 आगे बढ़ने से पहले एसपीजी की कार्यशैली को जानने-समझने के लिए थोड़ा गुजरे दौर में जाना सही रहेगा। एसपीजी का 1985 में बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर गठन हुआ था। राजघाट पर जब राजीव गांधी गए थे तो एक नवजवान, जो बाद में डाक्टरी जांच में पागल निकला, झाड़ियों में छुपा हुआ था। तमाशा देखने आया था या राजीव गांधी को मारने, सिद्ध नहीं हुआ। लेकिन, बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर कई पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई हो गई और प्रधानमंत्री की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए एक नए अत्याधुनिक सुरक्षा दस्ता एस0पी0जी0 का गठन हो गया।  8 अप्रैल,1985 को एसपीजी अस्तित्त्व में आई और डॉ. एस. सुब्रमण्यम इसके प्रथम प्रमुख बनें। एसपीजी के गठन का मकसद प्रधानमंत्री की सुरक्षा को चाक-चौबंद करना था। स्थितियां गंभीर थीं। 1984 में अकाल तख्त ध्वस्त करने के इंदिरा गांधी के दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय से पूरा सिख समाज मर्माहत था। परिणाम स्वरुप, श्रीमती इंदिरा की साल 1984 में उनके ही सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी थी। सारा देश उस रोंगेट खड़े कर देने वाली घटना से सन्न था। तब सरकार ने ये महसूस किया कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
इसके बाद राजघाट की घटना के बाद एसपीजी सामने आई। एस0पी0जी0 की जिम्मेवारी के दायरे में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को भी जोड़ा गया। कुछ अरसे के बाद सरकार ने तय किया कि एसपीजी पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी सुरक्षा उपलब्ध करवाएगी। उन्हें उनके पद से मुक्त होने के पांच साल बाद तक सुरक्षा देगी एसपीजी,ऐसा नियम बनाया गया। यह क्रम जारी रहा साल 1991 तक। उसी साल एक दिल-दहलाने वाली घटना में राजीव गांधी की जान चली गई। उसके बाद सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों की एस0पी0जी0 सुरक्षा कवर की उपर्युक्त पांच वर्षों की अवधि को दस साल कर दिया।
एसपीजी एक्ट में साल 2002 में एक बड़ा संशोधन किया गया। इसमें व्यवस्था कर दी गई कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके परिवार (राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और उनके कुनबे) को भी प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा मिलती रहेगी। जाहिर है, इसका सीधा लाभ सोनिया गांधी और उनके परिवार को मिल गया। इस संशोधन के फलस्वरूप वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्रियों क्रमशः डा. मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी और उनके बच्चों राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा, उनके पति राबर्ट और दोनों बच्चों को एसपीजी सुरक्षा मिल रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2015-16 के आम बजट में एसपीजी के लिए करीब 359.55 करोड़ रुपये रखे। यानी करीब-करीब रोज का एक करोड़ रुपये एसपीजी पर सरकार खर्च कर रही है। यह तो सिर्फ एसपीजी पर होने वाला सीधा खर्च है। लेकिन,ये वीवीआईपी जहां भी जाते हैं उस राज्य में पूरी कानून-व्यवस्था, बैरिकेडिंग, कारवां आदि का खर्च कई गुना अधिक है।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और कुछ हद तक सोनिया गांधी को भी एसपीजी कवर देने की बात तो समझ आती है। हालांकि, सोनिया की हैसियत तो मात्र एक पूर्व प्रधानमंत्री की विधवा की है। वे एक सांसद जरूर है। लेकिन, देश  में सांसद तो 795 हैं। उन्हें तो मात्र तीन अंगरक्षक ही मिलते हैं। न गाड़ी, न बड़ी कोठी, न गृह रक्षक फोर्स, न हेलीकाप्टर न और कोई तामझाम। इनपर विशेष मेहरबानी का कोई कारण तो समझ से परे है। सोनिया पर होने वाला सरकारी खर्च वाजिब है या नाजायज इसपर बहस तो होनी ही चाहिए। परन्तु, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और उनके पूरे कुनबे की सुरक्षा पर इतना भारी-भरकम खर्चा करने की क्या आवश्यकता है?प्रियंका गांधी तो सांसद भी नहीं हैं। उनके पास कोई सरकारी पद भी नहीं है। फिर भी उन्हें भव्य बंगला मिला हुआ है। वह भी बेहयाई पूर्वक प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा ले रही हैं।
 भारत के प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था दुनिया के किसी भी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष की तुलना में उन्नीस नहीं होनी चाहिए। है भी नहीं। हमारे देश ने बीते दौर में एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री क्रमशः इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को आतंकवाद का शिकार होते देखा है। जाहिर है, अब देश सतर्क हो चुका है। इसीलिए तो एसपीजी का गठन हुआ है। पर एक परिवार को बाल-बच्चों, नाती-पोंतों समेत सबको एसपीजी कवर प्राप्त हो और बाकी सब के सब उससे बंचित हों, यह कैसा न्याय है? दो तो सबको नहीं तो किसी को भी नहीं ।
 अचूक निशानची
एसपीजी को अमेरिका के सीक्रेट सर्विसेज के जवानों की तर्ज पर ही ट्रेनिंग मिलती है। फ़िलहाल, एसपीजी के ऊपर राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, डा. मनोमहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी और उनके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। ये कहीं पैदल, सड़क मार्ग, हवाई मार्ग, जल मार्ग या और किसी अन्य तरह से कहीं जा रहे हैं, तो एसपीजी ही इनकी सुरक्षा को देखेगी। एस.पी.जी. का रुतबा इसी से पता चलता है की एस.पी.जी. जहाँ भी चली जाती है, वहाँ के जिलाधिकारी और एस.पी. सबके अधिकार निरस्त हो जाते हैं।  स्थानीय पुलिस और प्रशासन को एस.पी.जी. के आदेश पर ही काम करना पड़ता है। ऐसा ही एस.पी.जी. कानून में है। एस.पी.जी. के जवान अचूक निशानची होते हैं। ये पलक झपकते ही किसी भी आतंकी को धूल में मिलाने की क्षमता रखते हैं।
एस.पी.जी. कवर में रहने वाले वीवीआईपी दिल्ली से बाहर के कार्यक्रमों की सुरक्षा व्यवस्थाओं को खुद एसपीजी का कोई प्रमुख अधिकारी देख रहा होता है जो आई.जी. या डी.आई.जी. स्तर का होता है। एक अधिकारी जो एस.पी. रैंक का होता है, इन महानुभावों के कांरवे में साथ-साथ चलता है और व्यक्तिगत सुरक्षा (राउंड रिंग) की जिम्मेदारी उसपर होती है। वह रात को रुकता भी वहीँ है जहाँ कि वीवीआईपी रुकेगा। चलेगा तो उसी गाड़ी में ड्राईवर की बगल की सीट पर। 
कौन से हथियार
एसपीजी कमांडों के पास बेलिज्यम के पास 3.5 किलो की राइफलें रहती हैं। ये एक मिनट में 850 राउंड फायर करने की क्षमता रखती हैं। इनकी अचूक रेंज 500 मीटर होती है। कुछ कमांडों के पास सेमी-आटोमैटिक पिस्टल भी रहती है। सभी कमांडो हल्की किन्तु, बेहद सुरक्षित बुलेट-प्रुफ जैकेट पहने रहते हैं। ये 2.2 किलो की होती हैं। इनमें इतनी सुरक्षित होती हैं कि कमांडो पर चलाई गई किसी भी प्रकार की गोली को निष्प्रभावी कर सकें। घुटने और कुहनी की सुरक्षा के लिए असरदार बुलेटप्रूफ पैड होते हैं।
ये वीवीआईपी जब किसी कार्यक्रम में भाग लेने जाते हैं तो इनके आसपास चार से छः गौगल्स लगाए सुरक्षा गार्ड खड़े रहते हैं। इनका रूख चारों दिशाओं में होता है। इन्होंने फैशन के लिए गौगल्स नहीं लगाए होते। गौगल्स लगाने के मूल में वजह यह रहती है कि जो वीवीआईपी पर बुरी नजर रखता है, उसे मालूम ही ना चले कि उस पर गार्ड्स की पैनी नजर है। बस, इसलिए गौगल्स पहनी जाती है।
 एसपीजी की सुरक्षा में आने वालों को दिल्ली से बाहर किसी अन्य शहर या विदेशी दौरे पर जाने के दौरान हेलिकॉप्टर या विमान की सुविधा भी तुरंत उपलब्ध करायी जाती है। ये सारी सुविधाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति पूर्व प्रधानमंत्री और कुछ हद तक सोनिया गांधी तक को मिलना तो जायज ठहराया जा सकता है।  पर इसके दायरे में राहुल गांघी और प्रियंका गांधी भी कवर हों, यह तो समझ से परे है। प्रियंका गांधी अपनी निजी यात्राओं पर लगातार सैर-सपाटा करती रहती हैं  पूरे परिवार और मित्रमंडली के साथ। तो सवाल यह है कि उनकी सुरक्षा का खर्च देश का आयकरदाता क्यों उठाए? यही बात राहुल गांधी को लेकर भी कही जा सकती है। हालांकि, वे सांसद होने के नाते सांसदों को लागू सरकारी बंगले के हकदार तो हैं। लेकिन, मंत्रियों के दर्जे के बंगले, तामझाम और हाउस गार्ड के हक़दार तो कतई नहीं। इन्हें एम0पी0 स्तरीय सुरक्षा मिले ताकि ये अपने कार्यों का निर्वाह सही तरह से कर सकें, इसमें किसी को कोई समस्या नहीं है। पर राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा और उनके परिवार को किस हैसियत से मिल रही है, प्रधानमंत्री के स्तर की एसपीजी सुरक्षा? वे चुनावी सभाओं से लेकर पार्टी के कार्यक्रमों में लगातार घूमते-फिरते रहते हैं। इसमें किसी को परेशानी भी नहीं है। पर उनकी निजी या पार्टी के काम से की गई यात्राओं का खर्चा आयकर दाता क्यों उठाए? वे कोई सरकारी काम तो कर नहीं रहे हैं। जो राहुल कर रहे हैं, वही कार्य तो और भी तमाम 795 सांसद भी कर रहे हैं। तो उन्हें भी दे दी जाए एसपीजी सुरक्षा? मैं मानता हूं कि सरकार को राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को एसपीजी कवर देने के संबध में पुनः विचार करने की और एस.पी.जी. एक्ट में व्यावहारिक सुधार की सख्त और तत्काल आवश्यकता है। 
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)

Thursday, 9 February 2017

रेप कैपिटल बना उत्तर प्रदेश


उत्तर प्रदेश देश की रेप राजधानी के रूप में तेजी से अपनी जगह बना रहा है। राज्य में पिछले साल 15 मार्च,2016 से लेकर 18 अगस्त,2016 के बीच 1,012 रेप के मामले दर्ज हुए। ये जानकारी अखिलेश सरकार ने खुद विधानसबा में भाजपा के सदस्य सतीश महाना के एक सवाल के जवाब में दी है I उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े चीख-चीखकर यह गवाही दे रहे हैं राज्य में 2014 और 2015 के बीच रेप के मामलों मे तीन गुना से ज्यादा वृद्धि हुई। जहां साल 2014 में राज्य में 3,467 रेप के मामले सामने आए, वहीं 2015 में 9,075 रेप के केस दर्ज हिए। यानी रेप के मामलों में तीन गुना इजाफा हुआ।

 नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की भी एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश देश के औरतें के लिहाज से सबसे असुरक्षित राज्यों  में शामिल हैं। उत्तर प्रदेश राज्य महिला कमीशन के प्रमुख जरीना उस्मानी भी यही मानती हैं कि औरतें के खिलाफ अपराध राज्य में बढ़े ही हैं। दरअसल पिछले साल उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में नेशनल हाइवे पर मां-बेटी के साथ हुए गैंगरेप के मामले ने देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा था। तब देश भर को पता चला था कि उत्तर प्रदेश में किस तरह से जंगलराज बढ़ता जा रहा है और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। यही नहीं रेप की कोशिश के मामलों में भी 30 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सबको पता है कि ऐसी कोशिशों को पुलिस छेड़खानी कहकर टाल देती है और मामला दर्ज नहीं करती I
उत्तर प्रदेश में होने वाले अपराध देश के अन्य राज्यों के अपराधों से औसतन दो गुना अधिक हैं। देश में जहां वर्ष 2010 से 2014 के बीच रेप के मामलों की संख्या 22,172 से बढक़र 36 हजार 735 हो गई। वहीं उत्तर प्रदेश में रेप के मामलों की संख्या में इसी दौरान 121 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश दलितों के लिए भी बेहद असुरक्षित होता जा रहा है। वर्ष 2015 में दलितों के खिलाफ अत्याचार के सबसे ज्यादा 8358 मामले भी देश में सबसे अधिक  उत्तर प्रदेश में ही दर्ज किए गए हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों में यह तथ्य उजागर हुए हैं। एनसीआरबी का कोई भी आँकड़ा केंद्र सरकार की कोई एजेंसी इकट्ठा नहीं करती बल्कि, राज्यों के एससीआरबी (स्टेट क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो) द्वारा भेजे गए आंकड़ों का ही संकलन और विश्लेषण मात्र करती है I
आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में यूपी में हत्या के सबसे ज्यादा 4732 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद बिहार में 3178का आंकड़ा रहा। महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में तो यूपी सबसे आगे रहा। यहां ऐसे 35527 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद पश्चिम बंगाल रहा।
अब उत्तर प्रदेश के एक और श्याम पक्ष को भी देख लीजिए। देश के 53 बड़े शहरों में होने वाले जघन्य अपराधों के आंकड़ों में एनसीआरबी ने उत्तर प्रदेश के जिन सात शहरों को शामिल किया है, उनमें लखनऊ और आगरा में सबसे अधिक अपराध हुए। उत्तरप्रदेश में 2015 में लखनऊ में सबसे अधिक 118 नागरिकों की हत्याएं हुईं। 2014 में यहां 109 हत्याएं हुई थीं। वहीं 92 हत्याओं के साथ मेरठ दूसरे और 74 हत्याओं के साथ आगरा तीसरे नंबर पर रहा। देश के स्तर पर सबसे अधिक 490 हत्याएं राजधानी दिल्ली में हुईं। लखनऊ में हर दिन 24 रेप, 21 अटेम्ट टू रेप, 13 मर्डर, 33 किडनैपिंग, 19 दंगे और 136 चोरियां। कुल एक दिन में 7650 क्राइम की घटनाएं। ये देश के सबसे बड़े क्राइम स्टेट यूपी का 1 दिन का यह रिपोर्ट कार्ड है । अब जरा इसे 365 दिन से गुणा कीजिए तो सर चकरा देने वाला डाटा सामने आएगा। ऐसा तब है जब यूपी पुलिस आए दिन अधिकांश अपराधों के मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती है।
इसकी शिकायत अबतक तो अखिलेश यादव के नए बने मित्र राहुल गांधी की पार्टी ही करती रही है I अब भले ये यह नया नारा लगा रहे हैं, कि, “ यू. पी. को यह साथ पसंद है I” अब पसंद है या नहीं
इसका खुलासा तो 11 मार्च को होने वाला ही है I किसकी होली मनती है और किसकी खराब होती है, यह देखने का इंतज़ार सभी बेसब्री से कर रहे हैं|

आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)

Wednesday, 8 February 2017

क्यों नहीं नपें माल्या, दाऊद, नदीम


एक बात सबकी समझ में अब आ ही जाना चाहिए कि अब देश में हजारों करोड़ के घोटाले करने के बाद या गंभीर अपराधों को अंजाम देकर विदेशों में जाकर शरण लेने वाले अब जरूर नपेंगे। उनकी संपत्ति होगी जब्त। यानी शराब कारोबारी विजय माल्या से लेकर, आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी और दाऊद इब्राहिम से लेकर नदीम तक, कोई अपराधी बचेंगा नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में स्पस्ट किया कि देश छोड़कर भागने वाले भगोड़ों पर नकेल कसने के लिए सरकार सख्त और नए कानून लाने पर विचार कर रही है।
 माल्या से दाऊद

 हालांकि उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन साफ है कि उनका इशारा माल्या, ललित मोदी और दाउद जैसों पर ही था। पैसे और राजनीतिक रसूख के बल पर कुछ धनपशुओं को लगने लगा था कि उन्हें कोई छेड़ ही नहीं सकता। बैंकों का करीब 9 हजार करोड़ रुपये माल्या के पास बकाया है। देर से ही भले, परन्तु सरकार का ऐसे लोगों के खिलाफ नया कानून लाना देश और आम जनता के हित में है। इसका एक संदेश पूरे विश्व में अब यह जाएगा कि अब भारत में अपराध करने वाले बचेंगे नहीं। नए कानून के तहत माल्या सरीखे अपराधियों की देश में फैली संपत्तियों को जब्त करेगी सरकार जो देश में कहीं भी होगी।
 लंबी प्रक्रिया
बेशक, अभी भगोड़े अपराधियों की संपत्ति जब्त करने के मामले में अभियोजन करने वाली एजेंसियों को कई लम्बी कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है और कई औपचारिकताएं करनी होती हैं। इस कारण अपराधी उससे बच निकलते हैं या कानूनी पेंच फंसा देते हैं। इसलिए जरूरत इस बात की थी कि भगोड़ों को कसने के लिए तमाम कानून प्रकिया को अति सरल बना दिया जाए। निश्चित रूप से नए प्रस्तावित कानून से ईडी और अन्य अभियोजन एजेंसियों को आसानी हो जायेगी और ऐसे अपराधियों की भारत की फैली संपंतियों को जब्त करने में सहूलियत होगी।
दरअसल सरकार पहले से ही विजय माल्या केस से सबक लेते हुए बड़े घपले या अपराध को अंजाम देकर देश छोड़कर भाग जाने वाले अपराधियों पर नकेल कसने की तैयारी कर रही थी। वर्तमान कानून के तहत अगर अपराधी विदेश भाग जाते हैं तो उसे वहां से भारत लाने में बेहद मुश्किल प्रक्रिया से गुजरना होता है। प्रत्यार्पण संधि के जरिए अपराधियों को देश वापस लाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। अधिकतर मामलों में प्रत्यार्पण विफल ही हो जाता है। ऐसे में जांच एजेंसियों के लिए जांच का काम और मुश्किल हो जाता है।
 नहीं बचेगा नदीम भी
सरकार के उपर्युक्त इरादे से अब नदीम सैफी जैसे अपराधियों की भी खैर नहीं है। करोलबाग दिल्ली में पहले जूस का काउन्टर चलाने वाले और बाद में म्यूजिक कैसेट कंपनी से शुरू करके म्यूजिक की दुनिया में तहलका मचाने वाले गुलशन कुमार की 12 अगस्त 1997 को निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या का षडयंत्र रचने के मामले में संगीत निर्देशक नदीम सैफी का नाम आया था। नदीम सैफी मामले में अपना नाम आते ही देश से ब्रिटेन के लिए भाग गया। इसी तरह से 1992 में मुंबई धमाकों का गुनाहगार दाऊद इब्राहीम और उसका छोटा भाई शकील पाकिस्तान में मौज कर रहे हैं। पर यह तो सारी दुनिया को पता है कि इनकी अकूत अचल संपतियां भारत में भी हैं। पाकिस्तान जाने  से पहले  मुंबई पुलिस के एक अदने से सब इंस्पेक्टर का बेटा दाऊद इब्राहीम बंबई से दुबई तक में अपने काले कारोबार के धंधे को चला रहा था।
 दरअसल, देखने में यह आ रहा है पिछले पचासों साल से भारत में भांति-भांति के अपराध करने के बाद कथित सफेदपोश से लेकर शातिर अपराधी देश से बाहर निकल लेते रहे हैं। इस तरह के भगोड़ों का आंकड़ा तेजी से बढा़ है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले पर नाराजगी जताते हुए बीती 25 नवंबर को केंद्र सरकार पर तंज कसा। कहा, “आजकल कोई भी भारत से भाग जाता है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि ऐसे लोगों को कार्यवाही के लिए विदेश से जल्द भारत लाया जाना चाहिए। जस्टिस जी एस केहर और जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की कि लोग देष में अपराध करके आसानी से देश छोड़कर भाग जाते हैं। केंद्र को न्याय के लिए उन लोगों को वापस लाना ही चाहिए।
एक बात साफ है कि सरकार अब इन भगोड़ों को देश में वापस लाने से पहले इनकी अचल संपत्ति को तो बेच सकती है। आजतक ऐसा तो हुआ नहीं! बेशक, अगर अब भगोड़ों की संपत्ति की नीलामी चालू हो गई, तो इनके पसीने छूट जाएंगे और आगे ऐसा करने वालों के लिए यह एक सख्त चेतावनी का काम करेगा। यदि ऐसा शुरू हुआ तो सरकार माल्या, दाऊद, नदीम, ललित मोदी सरीखे आरोपियों और अपराधियों को देश वापस लाने की कार्यवाही को गति प्रदान कर सकती है।

निर्विवाद रूप से इन भगोड़ों को पकड़ना जरूरी इसलिए भी है ताकि देश में यह सख्त संदेश जाए कि कानून चाहे तो किसी को, भी कहीं से भी पकड़ कर कानूनी शिकंजा कस सकता है। भारत ने 37 देशों के साथ प्रत्यार्पण संधि की है और आठ देशों के साथ प्रत्यार्पण समझौता किया है। इसमें उन बातों का ब्योरा भी दिया गया है, जिसे जांच एजेंसियों को विदेशी अदालतों को आरोपियों के प्रत्यार्पण का आग्रह करते वक्त अनुसरण करना चाहिए। भारत ने परस्पर कानून सहयोग समझौता भी 39 देशों के साथ किया है। ऐसे समझौते में शामिल देश वांछित अपराधी पर मुकदमा चलाने के लिए एक-दूसरे के साथ कानूनी सहयोग करते हैं, जिसमें शरण देने वाले देश में मौजूद उस व्यक्ति की संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान भी होता है।
 मौज में भगोडे
दाऊद इब्राहिम से लेकर माल्या के मामलों में यह देखने में आया है कि ये देश से बाहर मौज करते हैं। दाऊद दुबई में बैठकर बॉलीवुड के सितारों के लिए अपने घर में दावतें आयोजित करवाता था। इसी तरह से लंदन में भाग जाने के बाद से विजय माल्या वहां पर टी0 वी0 इंटरव्यू देता फिर रहा है । ललित मोदी भी लंदन की पेज थ्री पार्टीज में सक्रिय हैं। उन्हें कई बार किसी भारतीय टीवी चैनल को भी इंटरव्यू  देते हुए देखा जाता है। वे पूरे ठसके के साथ इंटरव्यू दे रहे होते हैं। गुलशन कुमार का गुनाहगार नदीम जैदी भी लंदन के एक शानदार अपार्टमेंट में ठाठ से रहता है। वहां पर ही रहकर वह कई फिल्मों का म्युजिक भी तैयार करता है। यानी उसकी जिंदगी की गाड़ी पहले की तरह से ही मौज में चल रही है।
अब छोटा शकील का हाल भी सुन लीजिए। उसे दाऊद इब्राहिम का सबसे खासमखास माना जाता है। अफसोस कि छोटा शकील को भी भारत लाने में सरकार को अबतक कोई कामयाबी नहीं मिली है। अपराध का पर्यायवाची बन गया छोटा शकील खुल्लम-खुल्ला देश के एक चोटी के अंग्रेजी के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया तक को इंटरव्यू देता रहता है। और, हमारे अखबार ऐसे इंटरव्यू  प्रमुखता से छापते भी रहते हैं। इंटरव्यू में छोटा शकील कहता है, “अब वह छोटा राजन को छोड़ेंगा नहीं।हालांकि सारा संसार जानता है कि वह मैच फिक्सिंग का धंधा करता है। पर शकील इंटरव्यू में दावा करता है कि  वह मैच फिक्सिंग में किसी तरह से लिप्त नहीं है। ऊपरवाले का दिया बहुत कुछ है।दाऊद-शकील पर मैच फिक्सिंग के आरोप बरसों से लगते रहे हैं। ये अरबों रुपये का सट्टा खिलवाते रहे हैं। जानने वाले जानते हैं कि अब दाऊद के सारे काम छोटा शकील ही करता है। यानी सभी के सभी भगौड़े देश से बाहर जाकर मौज में हैं। अब तो सरकार को इनकी भारत की संपत्ति जब्त कर उनपर बहुमंजिली इमारतें बनाकर एक बी एच के के सेट बनाकर उन गरीबों को बसा देना चाहिए, जो पुश्तों से झुग्गियों में बदतर जिन्दगी झेलने को मजबूर है।
जैसा कि सबको पता है कि मौजूदा कानूनों के तहत तो यह नहीं लगता है कि भारतीय जांच एजेंसियां जल्द ही देश में उद्योगपति विजय माल्या या दाऊद इंब्राहिम को वापस ला पाएंगी। इसलिए ये विकल्प भी बुरा नहीं है कि इन भगोड़ों की संपत्ति जब्त कर ली जाए और ‘‘गरीब कल्याण वर्ष’’ में गरीबों को समर्पित कर दी जाये।
 दाऊद का भाई इकबाल कसकर साऊथ मुंबई के मुसाफिरखाना नाम के इलाके में सपरिवार रहता है। उसके घर के पास ही उसकी बहन का परिवार भी रहता है। बहन हसीना का कुछ समय पहले निधन हो गया था। ये नामुमकिन है कि उन्हें दाऊद के मौजूदा ठिकाने के संबंध में कोई जानकारी न हो। क्या वे 1993 के मुंबई धमाकों के मा
स्टरमाइंड से बात नहीं करते होंगेअब दाऊद के परिवार वालों से उसकी भारत में बेनामी संपतियों को जब्त करना ही होगा। मुझे लगता है कि आने वाले समय में ‘‘माल्या-दाउद संप्रदाय’’ के तमाम अपराधियों का वाजिब हिसाब होने ही वाला है।
(लेखक राज्यसभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)

A Roof Under Head for All




You will agree that howsoever low income a man has, he nurses a dream to have a roof under his head; a house of his own. To make a man realize his dream to own a house, Finance Minister Arun Jaitley has taken right step in his Budget proposals for the year 2017-18.
Prime Minister Narendra Modi has already assured that by 2022, every Indian will have a house of his own. To fulfill the promise of Prime Minister, Jaitley has taken a step forward in this year’s Budget. He has given status of infrastructure to low cost housing schemes. This will ensure that even people Below the Poverty Line will be able to have a house.
Earlier, only a house with 30 square meter was categorized as low cost house and that too only in four metropolitan cities of Delhi, Mumbai, Kolkata and Chennai. This has been increased in the budget proposals to 60 SQ Mtr and it will apply not only in four cosmolitan cities but to all over the country. Another significant changed brought to the limit of built up area is to change it from built up area to carpet area. It means the built area that includes pillars, foundation, walls and stairs reduced the floor or carpet area of the house. By making it 60 Sq Mtr carper area size of the low cost houses would be bigger.



Now Buyers are Secured
The Modi Government has initiated steps and taken decision to reform the real estate sector to end irregularities and fraud by the builders be getting the Real Estate Bill cleared by Parliament. It will create a Real Estate Regulation Authority. Under the new law, Builders would have to deposit certain amount to designated bank before starting their project. Any violation of new regulations would attract heavy penalties. This will ensure timely completion of housing projects of Builders who are found to delay their projects making the buyers to pay more. The   era of looting innocent buyers is over now.

Take Loan On Easy Term
The Government has provided Rs. 20 thousand croes for granting loans to poorer section of the society to encourage people to take housing loans on easy terms. The amount would be disbursed during the financial year 2017-18 that is it will not be carried over to next fiscal year. If one calculates a loan of Rs. 10 lakh to low income group people to buy a house would benefit 2 lakh people of the country.

Finance Minister Jaitley estimates that it would lead to good investment by domestic and foreign investors in the housing sector. Some real estate experts tell me that the Budget has given special focus to the housing sector. Bank loans for low cost housing has already been reduced. Prime Minister Modi made this announcement in his broadcast to the nation in December 2016.
Believe it, Builders who were running from pillar to post to get finance would now be able to get finance from both banking and non-banking finance companies easily.
My house is located in NOIDA. I find that many builders were cheating and looting home buyers. I have been receiving complaints from home buyers from all over the country including from Bihar and Uttar Pradesh. On an average housing projects sold to buyers are running late by 20 to 30 months in Delhi, Gurgaon, Faridabad and NOIDA. Nephew of a friend of mine working in a leading company has paid Rs. 22 lakhs to a big builder. It is more than two years now, the project is in doldrums. Many buyers of the particular project in NOIDA have gone to court but relief is yet to come. The flat costs more than 60 lakhs.
An Chief Executive Officer of Real Estate Advisory Company recently told me that the builders work on projects with huge margin of 300 to 500 percent. A sizeable amount running into hundreds of crores are spent on publicity and advertisement.
Reforms in the housing sector would make dishonest builders vanish from the scene; many such fraudsters might even go to jail.
Well, it is a good augur for the people of the country that the Modi Government has affected reforms and taken decision for the larger benefit of the society, be it demonetization, reforms in housing sector and crack down on black money. The critics of Prime Minister Modi notably, Rahul Gandhi, Mamata Banerjee and the Communists should better look into the hard facts of the performance chart of the Government rather than harping on ‘ Where are acche din”.


 (The Writer is a Member of Rajya Sabha And Chair Men of Hindusthan Bahubhasha Sambad Agencies)

धूर्त बिल्डरों पर लगाम; ग्राहकों के चेहरे पर मुस्कान

आप ये मानेंगे कि किसी भी इंसान की माली हालात चाहे कितनी ही खस्ता क्यों न हो पर उसके जीवन का एक बड़ा सपना होता है कि उसकी अपनी भी एक छत हो।  उसका अपना एक अदद घर हो, जिसे वह अपना आशियाना कह सके। और, इस सपने को साकार करने की दिशा में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने 2017-18 के आम बजट में बहुत से अहम कदम उठाए हैं और यह आशा की किरण गरीबों और मेहनतकश भारतीयों के मन में जगा ही दी है कि जल्दी ही उनका सपना साकार हो जायेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो 2022 तक हरेक भारतीय को घर देने का वादा कर ही दिया हैं। उस वादे को पूरा करने की दिशा में अरुण जेटली ने इस बार की बजट में दो दूरदर्शी कदम उठाए हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में सस्ते घरों को इंफ्रास्ट्रक्चरका दर्जा दे दिया है। इससे गरीबों के लिए सस्ते घरों की आपूर्ति में तेजी से वृद्धि की संभावना तेजी से बढ़ेगी। सरकार की चाहत है कि साल 2022 तक गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले सभी लोगों को भी अपना आवास हो जाये। इस लक्ष्य को पाने में बजट का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा। एक बात और। पहले सस्ते घरों की श्रेणी में मात्र चार महानगरों में केवल 30 वर्ग मीटर तक के घर ही शामिल होते थे। इसके साथ-साथ, पूरे भारत  के अन्य शहरों में यह एरिया 60 मीटर था, इसमें पहले पूरा बिल्ड अप एरिया गिना जाता था। बिल्ड अप एरिया का मतलब वह एरिया होता है, जिस पर पूरा मकान बना होता है तथा जिसमें नींव, दीवारें और सीढ़ियां आदि भी शामिल होती हैं। अब इसको कारपेट एरिया में बदल दिया गया है। कारपेट एरिया यानि चार दीवारों के बीच घिरा रहने वाला एरिया। इस दूसरे कदम के चलते लोगों को अब सस्ते दर पर ही पहले से बड़े मकान मिल पाने का रास्ता साफ हो गया है।
अब सुरक्षित ग्राहक
दरअसल मौजूदा एनडीए सरकार देश के हाऊसिंग सेक्टर में फैली अव्यवस्था और गड़बड़ियों को दूर करने के लिए निरंतर पहल कर रही है। ये पहले ही रियल एस्टेट बिल को मंजूरी दिलवा चुकी है। इसमें रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया है। अब बिल्डरों को अपनी परियोजनाएं समय पर पूरी करने के लिए एक अलग बैंक खाते में निर्धारित धनराशि जमा करनी होगी। कानून का उल्लंघन करने वाले बिल्डरों पर तगड़ा जुर्माना भी लगेगा। अब तो यह दिखने ही लगा है कि लगातार निरंकुश हो गए बिल्डरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी हो रही है। उनके भोले-भाले ग्राहकों को लूटने के दिन अब बीत गए हैं। 
लीजिए हाऊसिंग लोन
यानी सरकार का रुख साफ भी है और दृढ़ भी है देश के हाऊसिंग सेक्टर में सुधार लाना और सस्ते घर उपलब्ध करवाना ही है हर कीमत पर। इसी क्रम में बजट में व्यक्तिगत हाउसिंग लोन को बढ़ावा देने के लिए नेशनल हाउसिंग बैंक के जरिए 20 हजार करोड़ रुपये की राशि गरीबों में बांटने का प्रावधान भी किया है। यह राशि बतौर होम लोन, अगले वित्त वर्ष के दौरान ही वितरित कर दी जाएगी।  अब हिसाब लगाया जाये तो दस लाख के हिसाब से भी एक बेघर को लोन दिया जाये तो दो लाख गरीबों को लाभ तो हो ही जाएगा।
होगा मोटा निवेश
वित्त मंत्री जेटली ने भी यह उम्मीद जताई है कि इन फैसलों से हाउसिंग सेक्टर में अब जम कर देशी और विदेशी निवेश भी होगा। मुझे रियल एस्टेट सेक्टर के कई विशेषज्ञ बता रहे हैं कि आम बजट ने सबसे ज्यादा फोकस हाउसिंग सेक्टर पर ही रखा है। एक तरफ होम लोन सस्ता होगा और दूसरी तरफ प्रत्यक्ष कर में प्रोत्साहन मिलने से रियल एस्टेट कंपनियां ज्यादा मकान बनाने की परियोजनाओं की शुरुआत करेंगी। सरकार ने उन बिल्डरों का भी ख्याल रखा है जिनके पास तैयार मकानों का स्टॉक फिलहाल मौजूद है। मौजूदा नियम के मुताबिक तैयार होने के बाद भी अगर मकान नहीं बिकते हैं तब भी कंपनियों को एक तरह का टैक्स देना पड़ता है। अब इन्हें मकान तैयार होने के एक वर्ष बाद तक कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा।
यकीन मानिए कि बुनियादी उद्योग का दर्जा मिलने के बाद फंड के लिए तरसतीं और तरह-तरह के जुगाड़ और तिकड़मों से फंड जुटाती हाउसिंग सेक्टर कंपनियों को कई तरफ से फंड मिलने लगेगा। मसलन, अब यह कंपनियां पेंशन फंड व बीमा कंपनियों से भी कर्ज ले सकेंगी। मेरा राजधानी से सटे नोएड़ा में आवास है। यहां सैकड़ों बिल्डर ग्राहकों को लूट रहे थे, कई स्तरों पर। इस कारण से साफ-सुथरे तरीके से काम करने वाले बिल्डरों की भी छवि खराब हो रही थी। मेरे पास लगातार देशभर से बिल्डरों के ग्राहकों को परेशान करने को लेकर शिकायतें आती रही हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश से तो आती ही थीं। अब तो गुवाहाटी, त्रिपुरा, शिलौंग, कलकत्ता, रांची, भोपाल और मुंबई तक से परिचित या परिचितों के परिचित डेरा जमाकर बैठ जाते थे, मदद के लिए। क्योंकि; दिल्ली से निकट होने के कारण नोएडा में देशभर में रहने वाले लोगों ने अपने फ्लैट बुक करा रखे थे। पर मुझे लगता है कि अब सब कुछ ठीक होने का वक्त आ गया है।
 बहरहाल, अब रियल एस्टेट क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ेगा जिससे सबके लिए आवास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा। अब तक रीयल एस्टेट सेक्टर लगभग अनियमित सा ही रहा हैं। इसमें बिल्डरों की कोई जवाबदेह नहीं रही है। हां, अब माना जा सकता है कि रियल एस्टेट सेक्टर में जवाबदेही आएगी और ग्राहकों के हितों को देखा जाएगा। दिल्ली से सटे एनसीआर में एक्टिव बिल्डरों ने तो अंधेर मचा कर रखा था। ये वादा करने के बाद भी अपने ग्राहकों को वक्त पर घर नहीं दे रहे थे। मैं यह तो नहीं कहता कि सारे खराब है। पर ज्यादातर का कामकाज पारदर्शी नहीं रहा। अभी एनसीआर में ज्यादातर प्रोजेक्ट की डिलवरी में 19 से 25 महीनों की देरी हो रही है। कुछ तो 5-7 वर्श पीछे चल रहे हैं। ग्राहकों को हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ रहा है और धरना-प्रदर्शन तक करना पड़ रहा है। यह सब किसी को अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे फंस जाने पर चक्कर से बाहर निकलने के लिए करना पड़े तो यह किसी भी सभ्य समाज का पारदर्शी व्यवहार या कारेाबार तो हरगिज नहीं कहा जा सकता। औसतन, फरीदाबाद में 25 महीने, गाजियाबाद में 19 महीनें, ग्रेटर नोएडा में 24 महीने और गुड़गांव में 22 महीने की देरी से काम हो रहा है। जाहिर है, यह सारी स्थिति उन तमाम लोगों के लिए बेहद कष्टदायी है, जो अपने पैसे फंसाकर अपने ही घर की डिलवरी का इंतजार कर रहे हैं।
 अब वक्त आ गया है कि रीयल एस्टेट कंपनियों को ग्राहकों के पक्ष में खड़ा होना होगा। उन्हें पारदर्शी व्यवहार करना ही होगा। मुझे कुछ समय पहले एक प्रमुख रियल एस्टेट एडवाइजरी कंपनी के सीईओ बता रहा था कि रीयल एस्टेट कंपनियां 300 से 500 परसेंट के मर्जिन पर काम करती थीं।  उसके उपर से विज्ञापनों का भारी भरकम खर्च अलग से। अब जरा देख लीजिए कि इन हालातों में बेचारा ग्राहक कहां जाएगा, अगर ये अपने घरों के दाम तर्कसंगत तरीके से तय करें तो घरों के दाम सीमाओं में ही रहगें और ज्यादा से ज्यादा मेहनतकश और नौकरीपेशा लोगों के अपना घर होने का सपना जल्द ही पूरा हो सकेगा।
धूर्त बिल्डर नहीं रहेंगे
नई परिस्थितियों में वे बिल्डर तो बाजार से गायब ही हो जाएंगे जिनका एकमात्र लक्ष्य लूट-खसोट करना रहता है। उनमें से अनेकों धूर्त नए कानून के मुताबिक जेल की हवा खायेंगें। ये विज्ञापनों पर बहुत मोटा खर्च करते हैं। अब तो इन्हें अपने प्रोजेक्ट वक्त पर पूरे करने ही होंगे। देरी के कारण अब तक इनकी मनमानी से करोड़ों लोगों को दिक्कत हुई है, अब उनके चेहरे पर मुस्कान आने का वक्त आ गया है। अफसोस यह है कि देश के हाऊसिंग सेक्टर में अभी सस्ते घर बनाने की दिशा में अबतक ठोस पहल नहीं हो रही थी। हां, लम्बी-चौड़ी बातें जरूर हो रही हैं। आप खुद सोचिए कि क्या आज की स्थिति में ठीकठाक नौकरी पेशा करने वाले इंसान भी मेट्रो या दूसरे या तीसरी श्रेणी के शहर में भी घर बनाने की हालत में है, लगभग नहीं।
 यह कहने की जरूरत नहीं है कि अफोर्डेबल हाउसिंगशब्द सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है। पर सस्ते घर बनाने वाले बिल्डर हैं कहां, और, कहां हैं बैंक, इसका उत्तर अबतक तो नकारात्मक ही मिलता रहा है। पर अब सरकार अफोर्डेबल हाउसिंग को गति देने का मन बना चुकी है। उसका लक्ष्य सबको 2022 तक सबको घर दिलवाने का है।
अगर बात पिछले कुछ दशकों के दौर की हो तो हमारे देश में अर्फोडेबल हाऊसिंग को गति देने के लिए जितनी गम्भीरता दिखाई जानी चाहिए थी, उसका अभाव ही दिखा। हालांकि, अब पिछले दो-ढाई सालों में हालात सुधर रहे हैं। दुर्भाग्यवश उस इंसान के लिए तो स्पेस सिकुड़ता ही जा रहा था, जिसकी आर्थिक हालत पतली थी। रियल एस्टेट सेक्टर के सभी हितधारकों ( स्टेक होल्डर्स) को एक बीएचके के भी घर बनाने होंगे ताकि कम आय वालों का भी गुजारा हो सके। दिल्ली में एक दौर में दिल्ली विकास प्राधिकरण(डीडीए) एलआईजी फ्लैट खूब बनाती थी। लेकिन, पिछले कुछ दशकों में तो डीडीए भी एलआईजी घर बनाने को लेकर गंभीर नहीं थी। बिल्डर बिरादरी तो सिर्फ लक्जरी फ्लैट्स का ही निर्माण करना चाहते हैं। कारण यह है कि इसमें मुनाफा ज्यादा है। ऐसी हालात में गरीबों की कौन सुनेगाऔर हाऊसिंग सेक्टर की बात करते हुए इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की अनदेखी नहीं की जा सकती। जाहिर तौर पर हरेक घर लेने वाला वहां पर घर लेने को उत्सुक रहता है, जहां पर इन्फास्ट्रक्टर यानि कि बिजली, पानी, सड़क और यातायात आदि की मूलभूत सुविधायें बेहतर हों, जहां पर स्कूल, यातायात व्यवस्था कालेज, अस्पताल पहले से हैं। भारत में अफोर्डेबल और लक्जरी दोनों ही तरह के घरों के ग्राहक भारी तादाद में मौजूद हैं। अगर बिल्डर बिरादरी की नीयत साफ रहे तो उन्हें ग्राहकों का मिलना कभी भी कठिन नहीं होगा। पर आमतौर पर ग्राहकों के हक के लिए सोचने वाले कम ही मिलते हैं। रियल एस्टेट फर्म भी मुनाफे से हटकर कुछ नहीं सोचते। बातें भले ही लम्बी-चौड़ी क्यों न कर लें।


बहरहालमोदी सरकार अब रियल एस्टेट सेक्टर को गति देने पहल कर चुकी है। अब बजट में भी इस सेक्टर पर तगड़ा फोकस रखा गया है। अब उम्मीद की जा सकती है इस सेक्टर में स्थितियां तेजी से सुधरेंगी। ग्राहकों को उनका वाजिब हक मिलेगा और सबको अपना आशियाना मिल सकेगा।

(लेखक राज्य सभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)