कुछ माह पहले राजधानी के आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष भट्टाचार्य की एक आरटीआई का जो जवाब भारत सरकार ने दिया से पता चला कि प्रियंका गांधी को लुटियन दिल्ली के 35 लोधी एस्टेट के शानदार बंगले का मासिक किराया मात्र 8,888 रुपये ही देना पड़ता है। यह छह कमरे और दो बड़े हालों का विशाल बंगला है। कई एकड़ में फैला है। ऊंची दीवारें हैं। जगह-जगह सुरक्षा पोस्ट बने हुए हैं। सुरक्षा प्रहरी २४ घंटे तैनात रहते हैं। यह भी ठीक है कि उनकी भी सुरक्षा अहम है। वे कम से कम नेहरु-गाँधी परिवार की वंशज तो हैं ही। पर उनसे इतना कम किराया क्यों लिया जा रहा है? इतने कम किराए पर राजधानी में एक कमरे का फ्लैट मिलना भी कठिन है। और जब प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा का अपना सैंकड़ों करोड़ का लंबा-चौड़ा कारोबार है। वे स्वयं सक्षम हैं, तो फिर उनसे इतना कम किराया सरकार क्यों लेती है। जाहिर है, देश की जनता को इस सवाल का जवाब तो चाहिए ही। और, क्या प्रियंका गांधी को लगभग मुफ्त में लुटियन जोन के बंगले में रहने की मांग करना स्वयं में शोभा देता है? इस देश में बाकी पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार भी तो हैं। उन्हें तो इस तरह की कोई सुविधाएं नहीं मिलतीं, शायद वे इतनी बेरहमी से ऐसी मांग भी रखने में हिचकते होंगे? प्रियंका तो सांसद या विधायक क्या वार्ड पार्षद तक भी तो नहीं हैं।
और इससे ठीक विपरीत उदाहरण भी सुन लें। अभी हाल ही में भूतपूर्व प्रधानमंत्री पी. वी.नरसिंह राव के पुत्र पी. वी. राजेश्वर राव के निधन का एक छोटा सा समाचार छपा था। वे 70 वर्ष के थे। श्री राव कांग्रेस के पूर्व सांसद भी थे और उन्होंने तेलंगाना में कुछ शिक्षा संस्थानों की शुरुआत भी की थी। उन्हें कभी कोई स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप से सुरक्षा नहीं मिली। उनके बाकी भाई-बहनों को भी कभी एसपीजी सुरक्षा नहीं प्राप्त हुई। वे लगभग अनाम-अज्ञात इस संसार से कूच कर गए। राव की तरह से बाकी भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्य भी सामान्य नागरिक की तरह से ही जीवन बिता रहे हैं। इनमें पत्नी और बच्चे शमिल हैं। डा. मनमोहन सिंह की एक पुत्री डा. उपिन्दर सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाती हैं, सामान्य अध्यापकों की तरह। वह पहले सेंट स्टीफंस कालेज से भी जुड़ी थीं। चंद्रशेखर जी के दोनों पुत्र भी बिना किसी खास सुरक्षा व्यवस्था के जीवनयापन कर रहे हैं। एक पुत्र नीरज शेखर तो अभी भी सांसद हैं। यहां तक कि वर्तमान प्रघानमंत्री का पूरा परिवार भी आम नागरिक की जिंदगी जी रहा है। पर राजीव गांधी के परिवार पर रोज करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। क्योंकि वे एसपीजी के सुरक्षा कवर में रहते हैं। क्या बाकी प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्यों की जान को किसी से कोई खतरा नहीं है? क्या वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं?
आगे बढ़ने से पहले एसपीजी की कार्यशैली को जानने-समझने के लिए थोड़ा गुजरे दौर में जाना सही रहेगा। एसपीजी का 1985 में बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर गठन हुआ था। राजघाट पर जब राजीव गांधी गए थे तो एक नवजवान, जो बाद में डाक्टरी जांच में पागल निकला, झाड़ियों में छुपा हुआ था। तमाशा देखने आया था या राजीव गांधी को मारने, सिद्ध नहीं हुआ। लेकिन, बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर कई पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई हो गई और प्रधानमंत्री की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए एक नए अत्याधुनिक सुरक्षा दस्ता एस0पी0जी0 का गठन हो गया। 8 अप्रैल,1985 को एसपीजी अस्तित्त्व में आई और डॉ. एस. सुब्रमण्यम इसके प्रथम प्रमुख बनें। एसपीजी के गठन का मकसद प्रधानमंत्री की सुरक्षा को चाक-चौबंद करना था। स्थितियां गंभीर थीं। 1984 में अकाल तख्त ध्वस्त करने के इंदिरा गांधी के दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय से पूरा सिख समाज मर्माहत था। परिणाम स्वरुप, श्रीमती इंदिरा की साल 1984 में उनके ही सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी थी। सारा देश उस रोंगेट खड़े कर देने वाली घटना से सन्न था। तब सरकार ने ये महसूस किया कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
इसके बाद राजघाट की घटना के बाद एसपीजी सामने आई। एस0पी0जी0 की जिम्मेवारी के दायरे में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को भी जोड़ा गया। कुछ अरसे के बाद सरकार ने तय किया कि एसपीजी पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी सुरक्षा उपलब्ध करवाएगी। उन्हें उनके पद से मुक्त होने के पांच साल बाद तक सुरक्षा देगी एसपीजी,ऐसा नियम बनाया गया। यह क्रम जारी रहा साल 1991 तक। उसी साल एक दिल-दहलाने वाली घटना में राजीव गांधी की जान चली गई। उसके बाद सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों की एस0पी0जी0 सुरक्षा कवर की उपर्युक्त पांच वर्षों की अवधि को दस साल कर दिया।
एसपीजी एक्ट में साल 2002 में एक बड़ा संशोधन किया गया। इसमें व्यवस्था कर दी गई कि “कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके परिवार (राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और उनके कुनबे) को भी प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा मिलती रहेगी।” जाहिर है, इसका सीधा लाभ सोनिया गांधी और उनके परिवार को मिल गया। इस संशोधन के फलस्वरूप वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्रियों क्रमशः डा. मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी और उनके बच्चों राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा, उनके पति राबर्ट और दोनों बच्चों को एसपीजी सुरक्षा मिल रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2015-16 के आम बजट में एसपीजी के लिए करीब 359.55 करोड़ रुपये रखे। यानी करीब-करीब रोज का एक करोड़ रुपये एसपीजी पर सरकार खर्च कर रही है। यह तो सिर्फ एसपीजी पर होने वाला सीधा खर्च है। लेकिन,ये वीवीआईपी जहां भी जाते हैं उस राज्य में पूरी कानून-व्यवस्था, बैरिकेडिंग, कारवां आदि का खर्च कई गुना अधिक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और कुछ हद तक सोनिया गांधी को भी एसपीजी कवर देने की बात तो समझ आती है। हालांकि, सोनिया की हैसियत तो मात्र एक पूर्व प्रधानमंत्री की विधवा की है। वे एक सांसद जरूर है। लेकिन, देश में सांसद तो 795 हैं। उन्हें तो मात्र तीन अंगरक्षक ही मिलते हैं। न गाड़ी, न बड़ी कोठी, न गृह रक्षक फोर्स, न हेलीकाप्टर न और कोई तामझाम। इनपर विशेष मेहरबानी का कोई कारण तो समझ से परे है। सोनिया पर होने वाला सरकारी खर्च वाजिब है या नाजायज इसपर बहस तो होनी ही चाहिए। परन्तु, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और उनके पूरे कुनबे की सुरक्षा पर इतना भारी-भरकम खर्चा करने की क्या आवश्यकता है?प्रियंका गांधी तो सांसद भी नहीं हैं। उनके पास कोई सरकारी पद भी नहीं है। फिर भी उन्हें भव्य बंगला मिला हुआ है। वह भी बेहयाई पूर्वक प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा ले रही हैं।
भारत के प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था दुनिया के किसी भी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष की तुलना में उन्नीस नहीं होनी चाहिए। है भी नहीं। हमारे देश ने बीते दौर में एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री क्रमशः इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को आतंकवाद का शिकार होते देखा है। जाहिर है, अब देश सतर्क हो चुका है। इसीलिए तो एसपीजी का गठन हुआ है। पर एक परिवार को बाल-बच्चों, नाती-पोंतों समेत सबको एसपीजी कवर प्राप्त हो और बाकी सब के सब उससे बंचित हों, यह कैसा न्याय है? दो तो सबको नहीं तो किसी को भी नहीं ।
अचूक निशानची
एसपीजी को अमेरिका के सीक्रेट सर्विसेज के जवानों की तर्ज पर ही ट्रेनिंग मिलती है। फ़िलहाल, एसपीजी के ऊपर राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, डा. मनोमहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी और उनके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। ये कहीं पैदल, सड़क मार्ग, हवाई मार्ग, जल मार्ग या और किसी अन्य तरह से कहीं जा रहे हैं, तो एसपीजी ही इनकी सुरक्षा को देखेगी। एस.पी.जी. का रुतबा इसी से पता चलता है की एस.पी.जी. जहाँ भी चली जाती है, वहाँ के जिलाधिकारी और एस.पी. सबके अधिकार निरस्त हो जाते हैं। स्थानीय पुलिस और प्रशासन को एस.पी.जी. के आदेश पर ही काम करना पड़ता है। ऐसा ही एस.पी.जी. कानून में है। एस.पी.जी. के जवान अचूक निशानची होते हैं। ये पलक झपकते ही किसी भी आतंकी को धूल में मिलाने की क्षमता रखते हैं।
एस.पी.जी. कवर में रहने वाले वीवीआईपी दिल्ली से बाहर के कार्यक्रमों की सुरक्षा व्यवस्थाओं को खुद एसपीजी का कोई प्रमुख अधिकारी देख रहा होता है जो आई.जी. या डी.आई.जी. स्तर का होता है। एक अधिकारी जो एस.पी. रैंक का होता है, इन महानुभावों के कांरवे में साथ-साथ चलता है और व्यक्तिगत सुरक्षा (राउंड रिंग) की जिम्मेदारी उसपर होती है। वह रात को रुकता भी वहीँ है जहाँ कि वीवीआईपी रुकेगा। चलेगा तो उसी गाड़ी में ड्राईवर की बगल की सीट पर।
कौन से हथियार
एसपीजी कमांडों के पास बेलिज्यम के पास 3.5 किलो की राइफलें रहती हैं। ये एक मिनट में 850 राउंड फायर करने की क्षमता रखती हैं। इनकी अचूक रेंज 500 मीटर होती है। कुछ कमांडों के पास सेमी-आटोमैटिक पिस्टल भी रहती है। सभी कमांडो हल्की किन्तु, बेहद सुरक्षित बुलेट-प्रुफ जैकेट पहने रहते हैं। ये 2.2 किलो की होती हैं। इनमें इतनी सुरक्षित होती हैं कि कमांडो पर चलाई गई किसी भी प्रकार की गोली को निष्प्रभावी कर सकें। घुटने और कुहनी की सुरक्षा के लिए असरदार बुलेटप्रूफ पैड होते हैं।
ये वीवीआईपी जब किसी कार्यक्रम में भाग लेने जाते हैं तो इनके आसपास चार से छः गौगल्स लगाए सुरक्षा गार्ड खड़े रहते हैं। इनका रूख चारों दिशाओं में होता है। इन्होंने फैशन के लिए गौगल्स नहीं लगाए होते। गौगल्स लगाने के मूल में वजह यह रहती है कि जो वीवीआईपी पर बुरी नजर रखता है, उसे मालूम ही ना चले कि उस पर गार्ड्स की पैनी नजर है। बस, इसलिए गौगल्स पहनी जाती है।
एसपीजी की सुरक्षा में आने वालों को दिल्ली से बाहर किसी अन्य शहर या विदेशी दौरे पर जाने के दौरान हेलिकॉप्टर या विमान की सुविधा भी तुरंत उपलब्ध करायी जाती है। ये सारी सुविधाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति पूर्व प्रधानमंत्री और कुछ हद तक सोनिया गांधी तक को मिलना तो जायज ठहराया जा सकता है। पर इसके दायरे में राहुल गांघी और प्रियंका गांधी भी कवर हों, यह तो समझ से परे है। प्रियंका गांधी अपनी निजी यात्राओं पर लगातार सैर-सपाटा करती रहती हैं पूरे परिवार और मित्रमंडली के साथ। तो सवाल यह है कि उनकी सुरक्षा का खर्च देश का आयकरदाता क्यों उठाए? यही बात राहुल गांधी को लेकर भी कही जा सकती है। हालांकि, वे सांसद होने के नाते सांसदों को लागू सरकारी बंगले के हकदार तो हैं। लेकिन, मंत्रियों के दर्जे के बंगले, तामझाम और हाउस गार्ड के हक़दार तो कतई नहीं। इन्हें एम0पी0 स्तरीय सुरक्षा मिले ताकि ये अपने कार्यों का निर्वाह सही तरह से कर सकें, इसमें किसी को कोई समस्या नहीं है। पर राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा और उनके परिवार को किस हैसियत से मिल रही है, प्रधानमंत्री के स्तर की एसपीजी सुरक्षा? वे चुनावी सभाओं से लेकर पार्टी के कार्यक्रमों में लगातार घूमते-फिरते रहते हैं। इसमें किसी को परेशानी भी नहीं है। पर उनकी निजी या पार्टी के काम से की गई यात्राओं का खर्चा आयकर दाता क्यों उठाए? वे कोई सरकारी काम तो कर नहीं रहे हैं। जो राहुल कर रहे हैं, वही कार्य तो और भी तमाम 795 सांसद भी कर रहे हैं। तो उन्हें भी दे दी जाए एसपीजी सुरक्षा? मैं मानता हूं कि सरकार को राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को एसपीजी कवर देने के संबध में पुनः विचार करने की और एस.पी.जी. एक्ट में व्यावहारिक सुधार की सख्त और तत्काल आवश्यकता है।
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)