Friday 27 January 2017

साधारण से असाधारण बनने तक का सफरनामा


विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान के लिए इस साल 89 हस्तियों को पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है| जिनमें  पद्मविभूषण  पुरस्कार के लिए दिग्गज गायक श्री के.जे. यसुदास , आध्यात्म के क्षेत्र में सद्गुरू जग्गी वसुदेव जी, सार्वजनिक क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता माननीय मुरली मनोहर जोशी जी  ,स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा जी, एनसीपी प्रमुख श्री शरद पवार जी, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष स्वर्गीय पीए संगमा जी ,विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रो. उडिपी रामचंद्रराव  को चुना गया ।

इस बार के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में पद्म पुरस्कार पाने वाले कुछ नाम इतने गुमनाम हैं कि उन्हें जनसामान्य  खोज ही नहीं पा रहा है | प्रसिद्धि के बजाय सरकार की अनूठी और अदभुद पहल ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले निष्काम कर्मयोगियों को प्रमुखता दी है। देश और समाज की सेवा में दशकों से लगे इन लोगों के बारे में खासतौर से आमलोगों ने अपनी सिफारिशें भेंजी थी। इस सूची में पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से लेकर गुजरात के बनासकांठा के एक छोटे से गांव और केरल, त्रिपुरा और मणिपुर जैसे राज्यों के लोग शामिल हैं। उनमें सिल्क की साड़ी बुनने वाली मशीन बनाने वाले, सूखाग्र्रस्त इलाके में अनार की लहलहाती फसल उगाने वाले और एक करोड़ से अधिक पेड़ लगाने वाले, कोलकाता में चार दशकों से मुफ्त में अग्निशमन विभाग में अपनी सेवा देने वाले ,बिहार लोक चित्रकारी को विश्व पटल पर पहुँचाने वाले लोग शामिल है | जिन्हें नाम से अधिक उनके  उपनामों से अधिक पहचान मिली है, जैसे डाक्टर दादी ,वृक्ष पुरूष, एंबुलेंस दादा आदि । वास्तव में ये हस्तियां निष्काम भाव से लोगों की सेवा में इतनी रमी रहीं कि लोग इनके नाम भूलकर इन्हें उपरोक्त उपाधियों से ही जानने लगे।
साधुवाद मोदी सरकार को जिसने हमारे बीच रहने वाली  ऐसी गुमनाम हस्तियों को पद्म पुरस्कार प्रदान कर इसके वास्तविक नाम और काम दोनों को तार्किक रूप प्रदान किया है 
सात साल की उम्र में अखाड़े में उतरकर तलवार थामनेवाली 76 साल की मीनाक्षी अम्मा केरल में युद्ध कला कलारीपयत्तु सीखाती हैं। स्कूल ड्रॉपआउट चिंताकिंडी मल्लेशम ने एक ऐसी मशीन बनाई जिससे परंपरागत पोचमपल्ली साड़ी बुनकरों को पहले के मुकाबले लगने वाला समय और मेहनत एक तिहाई रह गया ।
द ट्री मैन के नाम से मशहूर दरीपल्ली रम्मैया ने देश को हरा भरा बनाने को अपना सपना बना रखा है। उनका मिशन है देश में एक करोड़ पेड़ लगाना। बिपिन गणात्रा एक अग्निरक्षक के नाम से जाने जाते हैं। एक आग दुर्घटना में अपने भाई को गंवाने के बाद बिपिन लगातार एक स्वयंसेवी के तौर पर आग में फंसे लोगों की जानबचाने के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। मरणोपरांत पुरस्कार पाने वाली डॉ सुनीति सोलोमन को एड्स के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए याद किया जाएगा। साल 1985 में उन्होंने पहली बार देश में एड्स का मामला ढूंढा था।
रोड दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को तुरत मदद पहुंचाने वाले डॉ सुब्रतो दास को "हाईवे का मसीहा " भी कहा जाता है। उनका लाफलाईन फाउंडेशन करीब 4000 किलोमीटर के राजमार्ग पर अपनी सेवाएं दे रहा है।
डॉ दादी के नाम से मशहूर 91 साल की डॉ भक्ति यादव गायनाकॉलोजिस्ट हैं। वो लगातार पिछले 68 सालों से मुफ्त में महिलाओं का ईलाज कर रही हैं। गिरीश भारद्वाज को सेतु बंधु के नाम से जाना जाता है। पेशे से इंजीनियर गिरीश ने अबतक अपने स्रोतों से सूदूर ईलाकों में 100 से ज्यादा लो कॉस्ट यानी कम कीमतवाले पुल बनवाए हैं।
गेनाभाई दरगाभाई पटेल गुजरात के एक दिव्यांग किसान हैं। सूखेग्रस्त ईलाके को तकनीक के सहारे इन्होंने हरा भरा बनाया। देश के सबसे बड़े अनार उत्पादक किसानों में से एक जेनाभाई को अनार दादा के नाम से भी जाना जाता है। ओडिशा के दूरदराज गांव में जनजातीय परिवार में पैदा होने वाले चंडीगढ़ के किडनी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मुकुट मिंज को को भी  सम्मानित किया गया। तीन दशकों में डॉक्टर मुकुट मिंज 3400 से अधिक किडनी प्रत्यारोपित कर चुके हैं | मधुबनी पेंटिंग को क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर निकालकर अंतरराष्ट्रीय जगत तक पहुंचाने वाली बौआ देवी ,माता भगवती के जागर की असाधारण गायिका बसन्ती विष्ट ,नागपुरी नृत्य को असाधारण पहचान दिलाने वाले मुकुंद नायक आदि को भी सम्मानित सम्मानित किया गया हैं |
जनता के बीच ऐसे खोये हुये महापुरुषों को हमसे रूबरू कराने और उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार देकर सम्मानित करने के लिये भारत सरकार को पुनः धन्यवाद  |
आज रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना “ कंगूरे की ईंट ” सही मायनों में चरितार्थ हुई है -------------------------
दुनिया चकमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है, उसपर कितने लोगों का ध्यान जाता है ?

ठोस 'सत्य' सदा  'शिवम्' होता ही है, किंतु वह हमेशा 'सुंदरम्' भी हो यह आवश्यक नहीं है।

सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं।

हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं - इसीलिए सत्य से भी भागते हैं।

नहीं तो इमारत के गीत हम नींव के गीत से प्रारंभ करते।

किंतु, धन्य है वह ईंट, जो  ज़मीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी!

क्योंकि इसी पहली ईंट पर उसकी मज़बूती और पुख़्तेपन पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर करती है।

उस ईंट को हिला दीजिए, कंगूरा बेतहाशा ज़मीन पर आ गिरेगा।

कंगूरे के गीत गानेवाले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ।

वह ईंट जो ज़मीन में इसलिए गड़ गई कि दुनिया को इमारत मिले, कंगूरा मिले!

वह ईंट जो सब ईंटों से ज़्यादा पक्की थी, जो ऊपर लगी होती तो कंगूरे की शोभा सौ गुनी कर देती!

किंतु जिसने देखा कि इमारत की पायदारी (टिकाऊपन) उसकी नींव पर मुनहसिर (निर्भर) होती है, इसलिए उसने अपने को नींव में अर्पित किया।
पद्मपुरस्कार प्राप्त करने वाली सभी 89 हस्तियों को मेरी ओर से बहुत बहुत बधाईयाँ,शुभकामानाएं और कोटि कोटि अभिनंदन ...!!!!
आप सभी ने अपने अपने क्षेत्र में अपने राष्ट्र का गौरव बढाकर हमें गौरान्वित होने का अवसर प्रदान किया है |
आर.के. सिन्हा
सांसद ,राज्य सभा

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